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January 2020

भारत के शीर्ष मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें साजिशन इतिहास से छुपाया गया ।। Muslim freedom fighter



ये देखिये मुसलमानों का देशप्रेम ।।  हीरे जवाहरात ना चाहत की बात कर..
हीरे जवाहरात ना चाहत की बात कर, मेरे भारत की बात कर ।


जो आसानी से मिल जाता है वो हमेशा तक नहीं रहता
जो हमेशा तक रहता है वो आसानी से नहीं मिलता

मुस्कान आर मदद यह दोनों ऐसे इत्र है
जिन्हें जितना ज्यादा लोगों पर छिड़कोगे उतने ही आप खद महकने लगोगे

भीड़ हमेशा स रस्ते पर चलती है जो रास्ता आसान लगता हो
लेकिन इसका मतलब यह नहीं की भीड़ हमेशा सही रस्ते पर चलती है

सोच अच्छी होनी चाहिए
क्योंकि नजर का इलाज हो सकता है नजरिये का नहीं

उतार चढ़ाव के बाद भी अगर कोई इंसान आपका साथ नहीं छोड़ता तो उस इंसान की कदर हमेशा करो

जिंदगी में आपको कौन कौन मिलेगा यह वक्त तय करेगा
जिंदगी में आप किस किस से मिलोगे यह आप तय करोगे
किस किस के दिलों में रहोगे ये आपका सलूक तय करेगा

कई लोग अपने व्हाट्सएप स्टेटस WhatsApp Status पर इंपॉर्टेंट जानकारी पोस्ट करते हैं। इस तरह के व्हाट्सएप स्टेटस (WhatsApp Wiki) को देखने से हमें महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं।

WhatsApp New Featuresp का इस्तेमाल लगभग हर कोई करता है। आजकल whatsapp पर तरह-तरह का स्टेटस लगाने का खूब चलन है। लोग अपने मूड के हिसाब से whatsapp status का इस्तेमाल करते हैं। या कह सकते हैं कि अपने मन की भावनाओ को व्यक्त करने के लिए लोग व्हाट्सएप्प स्टेटस का इस्तेमाल करते हैं।

बर्थडे से लेकर खास त्योहारों तक इन सबको सेलिब्रेट करने के लिए भी लोग व्हाट्सएप्प हिन्दी स्टेटस (WhatsApp Hindi Status) का इस्तेमाल करते हैं। व्हाट्सएप्प स्टेटस लोगो के बीच मे एक ऐसा जरिया बन गया है जिसके माध्यम से लोग अपने सोच एवं विचारों को लोगो के सामने व्यक्त करने लगे हैं।






सिस्टर विक्टोरिया (अब आयशा) की इस्लाम अपनाने की दास्तां बड़ी दिलचस्प है। उनका पहली बार मुसलमान और इस्लाम से सामना 2002 में तब हुआ जब उन्होंने सेना की नौकरी जॉइन की और सऊदी अरब के सैनिकों के सम्पर्क में आई। और फिर उन्होंने साल 2011 में इस्लाम अपना लिया । अपनी जिंदगी में घटित एक दुखद घटना और कुरआन और हदीस (पैगम्बर मुहम्मद सल्ल. की शिक्षाओं) का अध्ययन के बाद उन्हें अपनी जिंदगी का मकसद इस्लाम में ही नजर आया।

अस्सलामु अलैकुम
मेरा नाम विक्टोरिया एरिंगटोन (अब आयशा) है। मैं जॉर्जिया में पैदा हुई और गैर धार्मिक ईसाइ परिवार में पली-बढ़ी। मैंने गैर धार्मिक इसलिए कहा है क्योंकि हम अक्सर चर्च नहीं जाते थे और मेरे माता-पिता शराबी और स्मोकर थे। मेरे माता-पिता के बीच उस वक्त तलाक हो गया था जब मैं युवा थी। तलाक के बाद मेरी मां ने चार बार विवाह किया। मेरे पिता अक्सर काम के सिलसिले में सफर पर ही रहते थे और वे घर पर कम ही रुकते थे। इन हालात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मेरी पारिवारिक जिंदगी सामान्य नहीं रही।

ईसाइयत से जुड़े कई सवाल अक्सर मेरे दिमाग में घूमते रहते थे। जैसा कि ईसाइ मानते हैं कि ईसा मसीह पूरे इंसानों के गुनाहों की खातिर सूली पर चढ़े हैं। मैं सवाल उठाती थी अगर हमें ईसा मसीह के सूली पर चढऩे की वजह से पहले ही अपने गुनाहों की माफी मिल गई है तो फिर हमें नेक काम करने की आखिर जरूरत क्यों है? मनाही के बावजूद आखिर हम सुअर का गोश्त क्यों खाते हैं? आखिर एक ही वक्त में ईश्वर, ईश्वर और ईसा कैसे हो सकता है? यानी एक ईश्वर दो रूपों में वह भी एक ही वक्त में! ऐसे कई सवाल अक्सर मेरे जहन में उठते थे। मैं इन सवालों का जवाब चाहती थी लेकिन न परिवारवालों के पास और न ही पादरियों के पास मेरे इन सवालों का जवाब था। मेरे यह सवाल अनुत्तरित ही रहे।

साल 2002 में मैंने सेना की नौकरी जॉइन की और टे्रनिंग के दौरान मैं कई मुस्लिम सऊदी अरब के सैनिकों के सम्पर्क में आई। यह इस्लाम से मेरा पहला परिचय था। हालांकि उस वक्त धर्म को लेकर मैं संजीदा नहीं थी। दरअसल मेरी जिंदगी में एक अहम मोड़ 2010 में आया जब मुझे एक गंभीर पारिवारिक संकट का सामना करना पड़ा क्योंकि मेरे ईसाइ पति ने मुझे तलाक दे दिया था। इसी बीच मेरी मुलाकात एक शख्स से हुई जो मुस्लिम था। मैंने उस मुुस्लिम शख्स की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं और गतिविधियों पर गौर किया। उससे इस्लाम से जुड़े कई सवाल पर सवाल किए। उस मुस्लिम शख्स ने मुझ पर कभी भी इस्लाम नहीं थोपा बल्कि मुझसे कहा कि आप फलां-फलां किताबें पढें। उसने मुझो इस्लाम पर कई किताबें और कुरआन दी। मैंने पूरा कुरआन पढ़ डाला और बहुत कुछ बुखारी (इसमें मुहम्मद सल्ल. की शिक्षाएं संकलित हैं।) भी। इस्लाम पर और भी अनगिनत किताबें मैने पढ़ डाली। मैंने अपने हर एक सवाल का जवाब इस्लाम में पाया। मैंने इस्लाम में जिंदगी से जुड़े हर पहलू पर रोशनी पाई। मुझे हर एक मसले का समाधान इस्लाम में नजर आया। अब मैं जान चुकी थी कि यही एकमात्र रास्ता है जो मुझे सिखाता है कि मुझो अपनी जिंदगी किस तरह गुजारनी चाहिए।

मुझे अपने सवालों के जवाब चाहिए थे। मैं एक गाइड बुक चाहती थी जिसके मुताबिक मैं अपनी जिंदगी गुजार सकूं, और आखिर इसी के चलते मैनें दिसम्बर 2011 में इस्लाम अपना लिया।

यूरोप आज जिस साइंस पर फख्र कर रहा है, वह इस्लामी मुफक्क्रीन की देन है. यह देन उस किताबुल्ल्लाह की है, जिसे मुसलमानों ने गंवा दिया और सिर्फ कुरान “ममात” व “आखरत” मुसलमानों के हिस्से में रह गया, जबकि जीवन व नेचर पर दस्तयाब कुरानी तालीमात को यूरोप ने ले लिया. ब्रिटिश रिसर्च ने इस सच्चाई का इज़हार किया है कि बारहवीं सदी तक यूरोप के तमाम जय्यद और पढ़े लिखे लोगों ने न सिर्फ कुरानी अहकाम का मुताला किया बल्कि वह करीब करीब मुसलमान जैसे मज़बूत अकीदा रखने वाले हो गए थे. इसी मजबूत अकीदे की बुनियाद पर उन्होंने नेचर का मुताला किया और वहदानियत में यकीन पैदा कर लिया.

‘जेन्स’ एक काबिल माहिरे तबियात साइंटिस्ट था, उस ने यह कहा था कि “मज़हब इंसानी ज़िन्दगी की नागुज़ेर ज़रूरत है, क्यूंकि अल्लाह पर इमान लाये बगैर साइंस के बुनयादी मसाइल हल ही नही हो सकते”. माहिरे अम्र्नियात Jeans Bridge ने तो यहाँ तक मान लिया कि “मज़हब और रूहानियत के इम्त्जाज से अकीदा व अमल के एक मुत्वाज़न निज़ाम की तशकील पर इस्लाम से बेहतर कोई मज़हब नही. मुसलमानों ने कुरान से रहनुमाई हासिल करके अहम् साइंसी एजादात को अंजाम दिया, क्यूंकि साइंस सच्चाई और हकीकत की तलाश करती है और कुरान सच्चाई और हकीक़त को अपना कर अल्लाह तक पहुँचने का रास्ता बताता है, इस लिए मुस्लिम साइंसदानों ने सच्चाई की तलाश में बेशुमार “सच” को पा लिया और मज़ीद हुसुल्याबी केलिए बहुत से एजादात को अंजाम दिया,मगर यूरौप ने अरबी तसानीफ़ का लातिनी में तर्जुमा कराया और फिर उसे अपने नामों से जोड़ दिया. बहुत से मुस्लिम मुस्न्न्फीन के नामों को छुपाने के लिए उन के नामों को लातिनी शक्ल दे दी.


जैसे :
1. जाबिर बिन हय्यान का नाम “गेबर” करके उसको यूरौप का इल्म केमियां का बावा आदम करार दे दिया गया.
2. इब्न मजा अबू बकर के नाम को बदल कर लातिनी शक्ल “आवेम पाके” कर दी गई.
3. इब्न दाउद के नाम की लातिनी शकल “आवेन देन्थ” कर दी गई.
4. अबू मुहम्मद नसर (फाराबी) के नाम की लातिनी शक्ल “फाराब्युस” कर दी गई .
5. अबू अब्बास अहमद (अल्फर्गानी) के नाम की लातिनी शक्ल “अल फर्गांस” कर दी गई.
6. अल्ख्लील के नाम की लातिनी शक्ल “अल्कली” कर दी गई.
7. इब्न रशद के नाम की लातिनी शक्ल “ऐवेरोस” कर दी गई.
8. अब्दुल्लाह इब्न बतानी के नाम की लातिनी शक्ल “बाता गेनोस” कर दी गई.
इस तरह से बे शुमार मुस्लिम, साइंसदान ऐसे हैं जिन के नाम को बदल कर उन के साइंसी एजादात और कारनामों को अपने नाम कर लिया गया.
मुस्लिम साइंसदानों ने रियाजी, फल्कियात, केमिया,  टेक्नोलोजी, जुगराफिया, और तब वगैरह में बेशुमार और काबिले ज़िक्र तहकीकात का काम अंजाम दिया है और मुस्लिम तेरहवीं चौदहवी और पन्द्रहवीं सदी तक लगातार बड़े बड़े साइंसदां पैदा करते रहे.

जिन में से कुछ के नाम यह हैं. जाबिर बिन हय्यान, अल्कुंदी, अल्ख्वार्ज़ी, अल राज़ी, साबित बिन कर्रा, अल्बिनानी, हसनैन बिन इसहाक अल्फाराबी, इब्राहीम इब्न सनान, अल मसूदी, इब्न सीना, इब्न युनुस, अल्कर्खी, इब्न अल हैश्म, अली इब्न इसा, अल बैरूनी,  अत्तिबरी, अबुल्वही, अली इब्न अब्बास, अबुल कासिम, इब्न ज्ज़ार, अल गजाली,  अल ज़र्काली, उमर खय्याम वगैरह. उन माए नाज़ मुस्लिम साइंसदानो के नाम बहुत ही कम मुद्दत में ही यानी 750 से 1100 ई० के दरमियान ही साइंसी दुनियां में सितारों की तरह जगमगा उठे और पूरी दुनियां ने देखा कि किस तरह मुस्लिम साइंटिस्ट ने कुरान करीम से हिदायत पा कर निज़ामे कुदरत के राजों को जान्ने में कमियाबी हासिल की .

मगर निहायत अफसोसनाक है कि यूरोप के अदब ने हामीले कुरान लोगों के साइंसी एहससान को बड़े बेहतर तरीके से नज़र अंदाज़ करने की तरकीब निकाल ली. न सिर्फ बड़े साइंसी एजादात को,बल्की मुसलमानी ज़िन्दगी की तौर तरीकों को, आदाब व रसम, खुश एत्वारियों, पाकीज़ा तर्ज़े मुआश्र्त, जाती सफाई और सिहत वगैरह के मैदानों में मुसलमानों की हुसुल्याबी और एजादात को बुरी तरह से मिटा दिया या फिर अपने नाम से मंसूब करके दुनियां के सामने सुर्खरू होने की नापाक साजिश की. इस तरह मुसलमानों की साइंसी खिदमात और रिसर्च और एजदात पर पर्दा डाल दिया गया, जबकि यह बात तारिख के पन्नो में दर्ज है,
हवाला जात:
1. कुरान साइंस और तहजीब व तमद्दुन- डॉक्टर हाफिज हक्कानी मियाँ कादिरी
2. कुरान और जदीद साइंस – डॉक्टर हशमत जाह
3. मुहाज्राते क़ुरानी- डॉक्टर महमूद अहमद गाज़ी

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