यूरोप आज जिस साइंस पर फख्र कर रहा है, वह इस्लामी मुफक्क्रीन की देन है. यह देन उस किताबुल्ल्लाह की है, जिसे मुसलमानों ने गंवा दिया और सिर्फ कुरान “ममात” व “आखरत” मुसलमानों के हिस्से में रह गया, जबकि जीवन व नेचर पर दस्तयाब कुरानी तालीमात को यूरोप ने ले लिया. ब्रिटिश रिसर्च ने इस सच्चाई का इज़हार किया है कि बारहवीं सदी तक यूरोप के तमाम जय्यद और पढ़े लिखे लोगों ने न सिर्फ कुरानी अहकाम का मुताला किया बल्कि वह करीब करीब मुसलमान जैसे मज़बूत अकीदा रखने वाले हो गए थे. इसी मजबूत अकीदे की बुनियाद पर उन्होंने नेचर का मुताला किया और वहदानियत में यकीन पैदा कर लिया.
‘जेन्स’ एक काबिल माहिरे तबियात साइंटिस्ट था, उस ने यह कहा था कि “मज़हब इंसानी ज़िन्दगी की नागुज़ेर ज़रूरत है, क्यूंकि अल्लाह पर इमान लाये बगैर साइंस के बुनयादी मसाइल हल ही नही हो सकते”. माहिरे अम्र्नियात Jeans Bridge ने तो यहाँ तक मान लिया कि “मज़हब और रूहानियत के इम्त्जाज से अकीदा व अमल के एक मुत्वाज़न निज़ाम की तशकील पर इस्लाम से बेहतर कोई मज़हब नही. मुसलमानों ने कुरान से रहनुमाई हासिल करके अहम् साइंसी एजादात को अंजाम दिया, क्यूंकि साइंस सच्चाई और हकीकत की तलाश करती है और कुरान सच्चाई और हकीक़त को अपना कर अल्लाह तक पहुँचने का रास्ता बताता है, इस लिए मुस्लिम साइंसदानों ने सच्चाई की तलाश में बेशुमार “सच” को पा लिया और मज़ीद हुसुल्याबी केलिए बहुत से एजादात को अंजाम दिया,मगर यूरौप ने अरबी तसानीफ़ का लातिनी में तर्जुमा कराया और फिर उसे अपने नामों से जोड़ दिया. बहुत से मुस्लिम मुस्न्न्फीन के नामों को छुपाने के लिए उन के नामों को लातिनी शक्ल दे दी.
जैसे :
1. जाबिर बिन हय्यान का नाम “गेबर” करके उसको यूरौप का इल्म केमियां का बावा आदम करार दे दिया गया.
2. इब्न मजा अबू बकर के नाम को बदल कर लातिनी शक्ल “आवेम पाके” कर दी गई.
3. इब्न दाउद के नाम की लातिनी शकल “आवेन देन्थ” कर दी गई.
4. अबू मुहम्मद नसर (फाराबी) के नाम की लातिनी शक्ल “फाराब्युस” कर दी गई .
5. अबू अब्बास अहमद (अल्फर्गानी) के नाम की लातिनी शक्ल “अल फर्गांस” कर दी गई.
6. अल्ख्लील के नाम की लातिनी शक्ल “अल्कली” कर दी गई.
7. इब्न रशद के नाम की लातिनी शक्ल “ऐवेरोस” कर दी गई.
8. अब्दुल्लाह इब्न बतानी के नाम की लातिनी शक्ल “बाता गेनोस” कर दी गई.
इस तरह से बे शुमार मुस्लिम, साइंसदान ऐसे हैं जिन के नाम को बदल कर उन के साइंसी एजादात और कारनामों को अपने नाम कर लिया गया.
मुस्लिम साइंसदानों ने रियाजी, फल्कियात, केमिया, टेक्नोलोजी, जुगराफिया, और तब वगैरह में बेशुमार और काबिले ज़िक्र तहकीकात का काम अंजाम दिया है और मुस्लिम तेरहवीं चौदहवी और पन्द्रहवीं सदी तक लगातार बड़े बड़े साइंसदां पैदा करते रहे.
जिन में से कुछ के नाम यह हैं. जाबिर बिन हय्यान, अल्कुंदी, अल्ख्वार्ज़ी, अल राज़ी, साबित बिन कर्रा, अल्बिनानी, हसनैन बिन इसहाक अल्फाराबी, इब्राहीम इब्न सनान, अल मसूदी, इब्न सीना, इब्न युनुस, अल्कर्खी, इब्न अल हैश्म, अली इब्न इसा, अल बैरूनी, अत्तिबरी, अबुल्वही, अली इब्न अब्बास, अबुल कासिम, इब्न ज्ज़ार, अल गजाली, अल ज़र्काली, उमर खय्याम वगैरह. उन माए नाज़ मुस्लिम साइंसदानो के नाम बहुत ही कम मुद्दत में ही यानी 750 से 1100 ई० के दरमियान ही साइंसी दुनियां में सितारों की तरह जगमगा उठे और पूरी दुनियां ने देखा कि किस तरह मुस्लिम साइंटिस्ट ने कुरान करीम से हिदायत पा कर निज़ामे कुदरत के राजों को जान्ने में कमियाबी हासिल की .
मगर निहायत अफसोसनाक है कि यूरोप के अदब ने हामीले कुरान लोगों के साइंसी एहससान को बड़े बेहतर तरीके से नज़र अंदाज़ करने की तरकीब निकाल ली. न सिर्फ बड़े साइंसी एजादात को,बल्की मुसलमानी ज़िन्दगी की तौर तरीकों को, आदाब व रसम, खुश एत्वारियों, पाकीज़ा तर्ज़े मुआश्र्त, जाती सफाई और सिहत वगैरह के मैदानों में मुसलमानों की हुसुल्याबी और एजादात को बुरी तरह से मिटा दिया या फिर अपने नाम से मंसूब करके दुनियां के सामने सुर्खरू होने की नापाक साजिश की. इस तरह मुसलमानों की साइंसी खिदमात और रिसर्च और एजदात पर पर्दा डाल दिया गया, जबकि यह बात तारिख के पन्नो में दर्ज है,
हवाला जात:
1. कुरान साइंस और तहजीब व तमद्दुन- डॉक्टर हाफिज हक्कानी मियाँ कादिरी
2. कुरान और जदीद साइंस – डॉक्टर हशमत जाह
3. मुहाज्राते क़ुरानी- डॉक्टर महमूद अहमद गाज़ी