एक तरफ ऐसे समाज की तस्वीर है जहां एक भीड़ एक अकेले इंसान को बचा रही है। दूसरी तरफ एक ऐसा समाज बन चुका है जहाँ एक भीड़ एक अकेले इंसान बेरहमी से जान ले लेती है। इस भीड़ के लिए मारने के लिए धर्म, ज़ात या कुछ भी कारण बनता जा रहा है।
जो समाज दुसरे इंसानों की क़द्र करता है वो फलता फूलता है और जो समाज दूसरे इंसानों की क़द्र नहीं करता वो तबाह ओ बर्बाद होता है।
जय हिंद
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