CAB:आप कल्पना नहीं कर सकते कि कितनी लंबी लाइनें लगेंगी. महीनों तक मुल्क अस्त व्यस्त रहेगा. बरसों से अपने गांव कस्बों से दूर रह रहे लोग, सारे कामकाज छोड़कर जमीनों की मिल्कियत और रिहाइश के प्रमाण लेने के लिए अपने गांव आएंगे. इनमें से कुछ यह भी पाएंगे कि पटवारी लेखपाल से सांठगांठ करके लोगों ने जमीनों की मिल्कियत बदल दी है. बहुत बड़े पैमाने पर संपत्ति के विवाद सामने आएंगे.
याद रखिए कि #आधारकार्ड और #पैनकार्ड दिखाकर आप अपनी नागरिकता सिद्ध नहीं कर सकते. जो लोग यह समझ रहे हैं कि NRC के तहत सरकारी कर्मचारी घर-घर आकर कागज देखेंगे, उन नादानों को यह मालूम होना चाहिए कि NRC के तहत नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी व्यक्ति की होगी, सरकार की नहीं! इसके अलावा जिसकी नागरिकता जहां से सिद्ध होगी, उसे शायद हफ्तों वही रहना पड़े.
करोड़ों लोगों के कामकाज छोड़कर लाइनों में लगे होने से देश का उद्योग व्यापार और वाणिज्य, और सरकारी गैर सरकारी दफ्तरों का कामकाज पर असर पड़ेगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक आसाम में सरकार में NRC को लागू करने में 16 सौ करोड़ रुपए खर्च किया है जबकि अपनी नागरिकता को प्रमाणित करने में लोगों ने भी बहुत खर्च किए हैं. पूरे देश में यह राशि कितनी होगी?
सोचिए इस अनुत्पादक खर्च का इकॉनमी पर क्या असर पड़ेगा? नोटबंदी और GST का इकॉनमी पर असर तो देख ही रहे हैं आप। इक्का-दुक्का घुसपैठियों को छोड़कर ज्यादातर जेनुइन लोग ही परेशान होंगे. श्रीलंकाई, नेपाली और भूटानी मूल के लोग, जो सदियों से इस पार से उस पार आते जाते रहे हैं, उन्हें अपनी नागरिकता सिद्ध करने में दांतो से पसीना आ जाएगा. जाहिर है, इनमें से ज्यादातर गैरमुस्लिम ही होंगे.
लगातार अपनी जगह बदलते रहने वाले #आदिवासी समुदायों को तो सबसे ज्यादा दिक्कत आने वाली है. वन क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोग वहां की जमीनों पर वन अधिकार कानून के तहत अपना कब्जा तो साबित कर नहीं पा रहे हैं, नागरिकता कैसे साबित करेंगे? दूरदराज के पहाड़ी और वनक्षेत्रों में रहने वाले लोग, घुमंतू समुदाय, अकेले रहने वाले बुजुर्ग, अनाथ बच्चे, बेसहारा महिलाएं, विकलांग लोग और भी प्रभावित होंगे.
नागरिकता सिद्ध करने में सबसे ज्यादा दिक्कत उसे होगी, जो सबसे ज्यादा वंचित है! और हां, जो लोग अपनी नागरिकता प्रमाणित नहीं कर पाएंगे उनके लिए देश में डिटेंशन सेंटर बनेंगे. इन डिटेंशन सेंटर्स को बनाने और चलाने में देश के अरबों खरबों रुपए खर्च होंगे. कुल मिलाकर देश का सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य अस्त-व्यस्त हो जाएगा. अगर बात समझ में आ गई हो, तो इस पोस्ट को जैसे चाहे, आगे बढ़ा दीजिए. दिल से निकली बात.
याद रखिए कि #आधारकार्ड और #पैनकार्ड दिखाकर आप अपनी नागरिकता सिद्ध नहीं कर सकते. जो लोग यह समझ रहे हैं कि NRC के तहत सरकारी कर्मचारी घर-घर आकर कागज देखेंगे, उन नादानों को यह मालूम होना चाहिए कि NRC के तहत नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी व्यक्ति की होगी, सरकार की नहीं! इसके अलावा जिसकी नागरिकता जहां से सिद्ध होगी, उसे शायद हफ्तों वही रहना पड़े.
करोड़ों लोगों के कामकाज छोड़कर लाइनों में लगे होने से देश का उद्योग व्यापार और वाणिज्य, और सरकारी गैर सरकारी दफ्तरों का कामकाज पर असर पड़ेगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक आसाम में सरकार में NRC को लागू करने में 16 सौ करोड़ रुपए खर्च किया है जबकि अपनी नागरिकता को प्रमाणित करने में लोगों ने भी बहुत खर्च किए हैं. पूरे देश में यह राशि कितनी होगी?
सोचिए इस अनुत्पादक खर्च का इकॉनमी पर क्या असर पड़ेगा? नोटबंदी और GST का इकॉनमी पर असर तो देख ही रहे हैं आप। इक्का-दुक्का घुसपैठियों को छोड़कर ज्यादातर जेनुइन लोग ही परेशान होंगे. श्रीलंकाई, नेपाली और भूटानी मूल के लोग, जो सदियों से इस पार से उस पार आते जाते रहे हैं, उन्हें अपनी नागरिकता सिद्ध करने में दांतो से पसीना आ जाएगा. जाहिर है, इनमें से ज्यादातर गैरमुस्लिम ही होंगे.
लगातार अपनी जगह बदलते रहने वाले #आदिवासी समुदायों को तो सबसे ज्यादा दिक्कत आने वाली है. वन क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोग वहां की जमीनों पर वन अधिकार कानून के तहत अपना कब्जा तो साबित कर नहीं पा रहे हैं, नागरिकता कैसे साबित करेंगे? दूरदराज के पहाड़ी और वनक्षेत्रों में रहने वाले लोग, घुमंतू समुदाय, अकेले रहने वाले बुजुर्ग, अनाथ बच्चे, बेसहारा महिलाएं, विकलांग लोग और भी प्रभावित होंगे.
नागरिकता सिद्ध करने में सबसे ज्यादा दिक्कत उसे होगी, जो सबसे ज्यादा वंचित है! और हां, जो लोग अपनी नागरिकता प्रमाणित नहीं कर पाएंगे उनके लिए देश में डिटेंशन सेंटर बनेंगे. इन डिटेंशन सेंटर्स को बनाने और चलाने में देश के अरबों खरबों रुपए खर्च होंगे. कुल मिलाकर देश का सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य अस्त-व्यस्त हो जाएगा. अगर बात समझ में आ गई हो, तो इस पोस्ट को जैसे चाहे, आगे बढ़ा दीजिए. दिल से निकली बात.
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