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Hazrat Muhammad (pbuh) हम कब तक हम कमज़ोरों को दावत देते रहोगे ?

एक मर्तबा हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ को किसी ने सवाल किया
कब तक हम कमज़ोरों को दावत देते रहोगे.... मक्का का जो पहलवान है उसको दावत क्यों नही देते.....?

मक्का का पहलवान जिनका नाम था हज़रत रुकाना बहुत जबरदस्त पहलवान था...! रुकाना के बारे में लिखा है वह इतने ज़बरदस्त पहलवान थे अगर एक जगह बैठ जाते तो 40 आदमी मिल कर भी उनको उठा नही सकते थे। किसी ने आकर कहा कब तक हम कमज़ोरों को दावत देते रहोगे अगर आप पैगम्बर इस्लाम हैं आप का दिन सच्चा है अगर आप नबी है तो रुकाना को जा कर दावत दो ....!

हमारे नबी ए करीम मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ मक्का में रुकाना के दरवाज़े पर गए दरवाज़ा खटखटाया अंदर से रुकाना ने पूछा कौन......! आप ﷺ ने फरमाया मै मुहम्मद मै अल्लाह का रसूल हुँ। एक बार कलमा पढ़ले तू कामयाब हो जाएगा ...! वह तो पहलवान बोला कलमा पढू. ...? ना ना कलमा नही पढूंगा मैं तो अपनी ताकत के बलबूते पर जीता हुँ मैं कलमा नही पढूंगा। नबी ने बहुत समझाया तो रुकाना बोला अगर तुम नबी हो तो कुश्ती का एक मुक़ाबला हो जाये। अगर मैं तुझे पछाड़ दूँ तो तू मेरी तरह बन जाना अगर तू मुझे पछाड दे तो मैं कलमा पढ़ लूँगा...!

आप मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ ने फरमाया मुझे यह भी मंज़ूर है। इस बहाने कम अज़ कम मेरा उम्मती जहन्नम से आज़ाद तो हो जाएगा। जब रुकाना ने देखा अच्छा मैं मक्का का पहलवान और यह मुझे चैलेंज दे रहा तो रुकाना ने कहा अभी नही अभी नही अब तो मैदान में मुक़ाबला होगा और सारे लोग जमा होंगे। चुनांचे ऐलान हुआ सारा मक्का जमा हो गया पूरा मैदान खचाखच भर गया। आप मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ ने रुकाना से कहा ए रुकाना अब यह मुक़ाबला शुरू होगा ... रुकाना ने कहा मुक़ाबला तो करेंगे पहले यह बताओ आप मुझपे पहले हमला करेंगे या पहले मैं हमला करूँगा....

नबीए करीम मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ की आंखों में आंसू आ गए फ़रमाया ना मैं तुझ-पे हमला नही करूँगा, कोई नबी अपने उम्मती पे हमला नही किया करता... [सुब्हान अल्लाह] इस लिए तू मुझपे हमला करले मैं उसके लिए तैयार हूं ...!

अब वह रुकाना तो रुकाना पहलवान थे सारा मक्का उनके साँथ मे था सारे मर्द और सारी औरतो ने उसके नाम की आवाजे लगाई वो रुकाना दौड़ता दौड़ता आया करीब था के हमारे नबी-ए-करीम पर हमला करता..!! जैसे ही उछला नबी ने रहमत वाले हाँथों को फैला दिया वह उछल कर नबी ए करीम मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ की गौद में आ गया.. हमारे नबी-ए-करीम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ ने बड़े मुहब्बत से उसे ज़मीन पर रखा... ले रुकाना तू हार गया और में जीत गया..

वह रुकाना चकरा गया के यह क्या हुआ अचानक रुकाना कहता है.. ऐ-मुहम्मद यह मेरी समझ मे नही आया मुझको एक और चांस दे-दो ना इसलिए के मैने हज़ारो कुश्तिया लड़ी लेकिन :- ऐसी कुश्ती तो मैने आज तक नही लड़ी .....
नबी ए करीम मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ ने फरमाया
रुकाना जा तुझे दूसरा मौका भी देता हूं ..

हज़रत रुकाना फिर दौड़ते-दौड़ते आये
फिर उछले नबी ने रहमत वाले हाँथों को फिर से फैलाया रुकाना उछल के गौद में आ गए हमारे नबी-ए-करीम ﷺ ने फिर से मुहब्बत से ज़मीन पर रख दिया। और फ़रमाया रुकाना तू फिर हार गया में जीत गया ..!
रुकाना ने फिर कहा नही समझ के सब बाहर है एक और चांस आखरी चांस।

जब तीसरी बार हज़रत रुकाना आये हमारे नबी ए करीम मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ ने इसी तरह अपने मुबारक हाँथो को रखा रुकाना उछले और उछलने के बाद नबी की गोद में, नबी ने बड़े मुहब्बत से ज़मीन पर रखा। हज़रत रुकाना को ज़मीन पर रखना था रुकाना ने ऐलान फ़रमाया. अब सारा मक्का रुकाना को कहने लगा. नाम डूबा दिया मिट्टी में मिला दिया. कलमा पढ़ लिया तूने तू मक्के का पहलवान तू मक्के का जांबाज़ तू मक्के का इतना बहादुर और तूने कलमा पढ़ लिया।

हज़रत रुकाना ने फरमाया ए मक्का वालो मैने कलमा इस लिए नही पढ़ा के में कुश्ती में तीन बार हार गया, मैने तो इसलिए कलमा पढ़ा के बहुत कुश्तिया लड़ा हु बड़े बड़े मैदानों में गया हूं लेकिन:- हमारा यह दस्तूर है. जब सामने वाला कंट्रोल करता है तो ज़ोर से ज़मीन पे पटकता है ... मैं तीन मर्तबा नबी के कंट्रोल में आया वह चाहते तो मुझे ज़ोर से ज़मीन पे पटकते लेकिन:- अल्लाह की कसम वह मुझे ऐसे ज़मीन पर रखते थे जैसे कोई शफ़क़त करने वाली माँ अपने दूध पीते बच्चे को ज़मीन पे रखती है। ए मक्का वालो तुम्हे क्या मालूम जब में पहली मर्तबा दौड़ा था उनके चेहरे से वो नूर उठ रहा था जो आसमान की तरफ जा रहा था मैं उसी वक़्त समझ गया यह किसी मामूली इंसान का चेहरा नही यह तो नबूवत वाला चेहरा है उसी वक़्त मेरे दिल ने कहा यह झूठा नही हो सकता यह तो नबी के सिवा और कुछ नही हो सकता....

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